ऐसे में उदास हो जाना
उदासीन हो जाना
या पागल हो जाना भी स्वाभाविक
किसी बड़ी बेहया धातु के बने हुए वे,
जो ऐसे में भी हैं, गाते
हरिवंश राय ‘बच्चन’
सफलता ! आपकी नियमित परिश्रम का परिणाम है |
1.नयी कविता-"अज्ञेय"
2.नवगीत-"राजेन्द्र प्रसाद सिंह" (डॉ शम्भूनाथ सिंह)
3.साठोत्तरी कविता -"जगदीश गुप्त"
4.ताजी कविता-"लक्ष्मीकांत वर्मा"
5.तटकी कविता-"राम बचन राय"
6.अगीत-"रंगनाथ मिश्र"
7.बीट गीत -"राजकमल चौधरी"
8.अस्वीकृत कविता-"श्रीराम शुक्ल"
9.सहज कविता-"रविन्द्र भ्रमर"
10.सनातणी सूर्योदय कविता-'विरेन्द्र कुमार जैन"
11.कैप्सूल वाद-"डॉ ओमकार नाथ त्रिपाठी"
12.अकविता-"श्याम परमार"
13.आज की कविता-"हरीश मैदानी"
14.साम्प्रतिक कविता-"श्याम नारायण"
15.युयुत्शावादीकविता-"शलभ श्री राम सिंह"
16.निर्दिशांयामी कविता- "डॉ सत्यदेव राजहंस"
17.वाम/प्रतिबद्ध कविता-"डॉ परमानंद श्रीवास्तव'
18.नवप्रगतिशील-"नवलकिशोर"
'भोगनेवाले प्राणी और सृजन करने वाले कलाकार में सदा एक अंतर रहता है, और जितना बड़ा कलाकार होता है, उतना ही भारी यह अंतर होता है...'
(7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987)
सचमुच के आये को
कौन खोले द्वार!
हाथ अवश
नैन मुँदे
हिये दिये
पाँवड़े पसार!
कौन खोले द्वार!
तुम्हीं लो सहास खोल
तुम्हारे दो अनबोल बोल
गूँज उठे थर थर अन्तर में
सहमे साँस
लुटे सब, घाट-बाट,
देह-गेह
चौखटे-किवार!
मीरा सौ बार बिकी है
गिरधर! बेमोल!
सचमुच के आये को
कौन खोले द्वार!
एक नीला आईना
बेठोस-सी यह चाँदनी
और अंदर चल रहा हूँ मैं
उसी के महातल के मौन में ।
मौन में इतिहास का
कन किरन जीवित, एक, बस ।
एक पल की ओट में है कुल जहान ।
आत्मा है
अखिल की हठ-सी ।
चाँदनी में घुल गए हैं
बहुत-से तारे, बहुत कुछ
घुल गया हूँ मैं
बहुत कुछ अब ।
रह गया-सा एक सीधा बिंब
ऐसे में उदास हो जाना उदासीन हो जाना या पागल हो जाना भी स्वाभाविक किसी बड़ी बेहया धातु के बने हुए वे, जो ऐसे में भी हैं, गाते ...